“पवित्र गाय” से जुड़े कुछ “अपवित्र” सवाल
अफ़सोस की बात हैं कि आजादी के बाद भी गायरक्षा के नाम पर सियासत ख़त्म नहीं हुई। यह उसी ब्रह्मणवादी सोच का परिणाम है कि संविधान के नीति-निर्देशक तत्व में गाय जैसे जानवर की हत्या पर रोक लगाने की बात कही गई है। मुझे इसमें कोई हिचक नहीं है कि इस तरह की ब्रह्मणवादी नीतियों के पीछे गांधीवादी विचार था, जो गायरक्षा को हिंदू धर्म का कर्तव्य मानते थे